Saturday, February 29, 2020

सबसे ख़तरनाक

मेहनत की लूट सबसे ख़तरनाक नहीं होती पुलिस की मार सबसे ख़तरनाक नहीं होती ग़द्दारी और लोभ की मुट्ठी सबसे ख़तरनाक नहीं होती बैठे-बिठाए पकड़े जाना बुरा तो है सहमी-सी चुप में जकड़े जाना बुरा तो है सबसे ख़तरनाक नहीं होता कपट के शोर में सही होते हुए भी दब जाना बुरा तो है जुगनुओं की लौ में पढ़ना मुट्ठियां भींचकर बस वक्‍़त निकाल लेना बुरा तो है सबसे ख़तरनाक नहीं होता सबसे ख़तरनाक होता है मुर्दा शांति से भर जाना तड़प का न होना सब कुछ सहन कर जाना घर से निकलना काम पर और काम से लौटकर घर आना सबसे ख़तरनाक होता है हमारे सपनों का मर जाना सबसे ख़तरनाक वो घड़ी होती है आपकी कलाई पर चलती हुई भी जो आपकी नज़र में रुकी होती है सबसे ख़तरनाक वो आंख होती है जिसकी नज़र दुनिया को मोहब्‍बत से चूमना भूल जाती है और जो एक घटिया दोहराव के क्रम में खो जाती है सबसे ख़तरनाक वो गीत होता है जो मरसिए की तरह पढ़ा जाता है आतंकित लोगों के दरवाज़ों पर गुंडों की तरह अकड़ता है सबसे ख़तरनाक वो चांद होता है जो हर हत्‍याकांड के बाद वीरान हुए आंगन में चढ़ता है लेकिन आपकी आंखों में मिर्चों की तरह नहीं पड़ता सबसे ख़तरनाक वो दिशा होती है जिसमें आत्‍मा का सूरज डूब जाए और जिसकी मुर्दा धूप का कोई टुकड़ा आपके जिस्‍म के पूरब में चुभ जाए मेहनत की लूट सबसे ख़तरनाक नहीं होती पुलिस की मार सबसे ख़तरनाक नहीं होती ग़द्दारी और लोभ की मुट्ठी सबसे ख़तरनाक नहीं होती ।

- अवतार सिंह संधू " पाश "

देश कागज पर बना नक्शा नहीं होता

यदि तुम्हारे घर के एक कमरे में आग लगी हो तो क्या तुम दूसरे कमरे में सो सकते हो? यदि तुम्हारे घर के एक कमरे में लाशें सड़ रहीं हों तो क्या तुम दूसरे कमरे में प्रार्थना कर सकते हो? यदि हाँ तो मुझे तुम से कुछ नहीं कहना है। देश कागज पर बना नक्शा नहीं होता कि एक हिस्से के फट जाने पर बाकी हिस्से उसी तरह साबुत बने रहें और नदियां, पर्वत, शहर, गांव वैसे ही अपनी-अपनी जगह दिखें अनमने रहें। यदि तुम यह नहीं मानते तो मुझे तुम्हारे साथ नहीं रहना है। इस दुनिया में आदमी की जान से बड़ा कुछ भी नहीं है न ईश्वर न ज्ञान न चुनाव कागज पर लिखी कोई भी इबारत फाड़ी जा सकती है और जमीन की सात परतों के भीतर गाड़ी जा सकती है। जो विवेक खड़ा हो लाशों को टेक वह अंधा है जो शासन चल रहा हो बंदूक की नली से हत्यारों का धंधा है यदि तुम यह नहीं मानते तो मुझे अब एक क्षण भी तुम्हें नहीं सहना है। याद रखो एक बच्चे की हत्या एक औरत की मौत एक आदमी का गोलियों से चिथड़ा तन किसी शासन का ही नहीं सम्पूर्ण राष्ट्र का है पतन। ऐसा खून बहकर धरती में जज्ब नहीं होता आकाश में फहराते झंडों को काला करता है। जिस धरती पर फौजी बूटों के निशान हों और उन पर लाशें गिर रही हों वह धरती यदि तुम्हारे खून में आग बन कर नहीं दौड़ती तो समझ लो तुम बंजर हो गये हो- तुम्हें यहां सांस लेने तक का नहीं है अधिकार तुम्हारे लिए नहीं रहा अब यह संसार। आखिरी बात बिल्कुल साफ किसी हत्यारे को कभी मत करो माफ चाहे हो वह तुम्हारा यार धर्म का ठेकेदार, चाहे लोकतंत्र का स्वनामधन्य पहरेदार।

- सर्वेश्वर दयाल सक्सेना

Tuesday, August 23, 2016

Keeping Quiet

Now we will count to twelve
and we will all keep still.

For once on the face of the earth,
let's not speak in any language;
let's stop for one second,
and not move our arms so much.

It would be an exotic moment
without rush, without engines;
we would all be together
in a sudden strangeness.

Fisherman in the cold sea
would not harm whales
and the man gathering salt
would look at his hurt hands.

Those who prepare green wars,
wars with gas, wars with fire,
victories with no survivors,
would put on clean clothes
and walk about with their brothers
in the shade, doing nothing.

What I want should not be confused
with total inactivity.
Life is what it is about;
I want no truck with death.

If we were not so single-minded
about keeping our lives moving,
and for once could do nothing,
perhaps a huge silence
might interrupt this sadness
of never understanding ourselves
and of threatening ourselves with death.
Perhaps the earth can teach us
as when everything seems dead
and later proves to be alive.

Now I'll count up to twelve
and you keep quiet and I will go.

 -- Pablo Neruda

Saturday, May 31, 2014

Closed.

We lasted only
as long as our photo session.

We held shoulders, smiled.
There was a click and a flash,
by our friendship, and
after a few 'takes'
it was over.

I thought I was close to you,
but the truth dawned,
I was closed to you.

Saturday, May 24, 2014

An eye for an eye

An eye for an eye,
may leave the whole world blind.
But,
What if the people are blind
already, so used to the dark
that even a 'tubelight' can
sun-burn their frozen minds!

An eye for an eye,
may leave the whole world blind.
But,
what if people don't wish to see at all,
content with their 'sixth sense',
happy-go-lucky in their 'perfect' world,
they'll be happy to trade one eye
for a decent fee.

An eye for an eye,
may leave the whole world blind.
But,
what if people want a third one,
forever greedy for more,
to rejoice among chaos,
to destruct everything,
everything but themselves.

Monday, May 12, 2014

Hotel Moksha

If you think you're dying,
subject to our verification
that you're not lying,
welcome to Hotel Moksha.
You can die here in peace:
Salvation is guaranteed,
completely free, with ease.

Whitewashed room,
with two extra cots.
No food provided,
at no extra cost.
Thugs and Infidels
beware, and be lost !

If you are still alive,
after fifteen days,
we may ask you to leave!
There maybe many ways,
of dying, but ours' the best.
Please join the queue,
there is a test,
before we can
allow you to rest.

Hurry! call today to book
an assured place in heaven,
exclusively at Hotel Moksha.
Limited seats available.

Note:
If you're caught being naughty,
or having too much fun
we'll shove you out
to live under the sun.


Inspired by this article:
http://edition.cnn.com/interactive/2014/04/world/india-hotel-death/index.html?utm_source=On+Being+Newsletter&utm_campaign=161b8c34d4-20140502_Leonard_Mlodinow_Newsletter&utm_medium=email&utm_term=0_1c66543c2f-161b8c34d4-67545261

Sunday, March 16, 2014

Love after Love

The time will come
when, with elation
you will greet yourself arriving
at your own door, in your own mirror
and each will smile at the other's welcome,

and say, sit here. Eat.
You will love again the stranger who was your self.
Give wine. Give bread. Give back your heart
to itself, to the stranger who has loved you

all your life, whom you ignored
for another, who knows you by heart.
Take down the love letters from the bookshelf,

the photographs, the desperate notes,
peel your own image from the mirror.
Sit. Feast on your life. 


 --- Derek Walcott
Creative Commons License
Poetry and prose by Avishek Ranjan is licensed under a Creative Commons Attribution-ShareAlike 3.0 Unported License