Thursday, February 23, 2012

एक एहसान

ऐ ठंडी हवाओं.....
यूँही उनकी जुल्फें लहराती रहो !

ऐ रेशमी धूप......
यूँही उन्हें नहलाती रहो ! 
     
ऐ रवि की रश्मियाँ......
यूँही उनकी पलके झुकाती रहो !
 
ऐ ओस की बूंदों .....
यूँही उन्हें भिगाती रहो !
    
ऐ शशि की चांदनी......
यूँही उन्हें देख शर्माती रहो !   
   
ऐ रात की रानियाँ .....
यूँही उन्हें महकाती रहो !  
   
ऐ सरगम की सात सुरों ....
यूँही उन्हें गुनगुनाती रहो !  
  
तुम सबका ये एहसान होगा
उन्हें यूँही मेरे पास लाती रहो !

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Poetry and prose by Avishek Ranjan is licensed under a Creative Commons Attribution-ShareAlike 3.0 Unported License