आँख खुली है जबसे
हुआ शुरू जीवन संघर्ष
रो-रोकर चिल्लाकर
भूख मिटाने का संघर्ष
गिडते-पड़ते नाक तोड़कर
चलना सीखे कर संघर्ष
आधी नींद मे सवेरे उठकर
पढ़ने जाने में संघर्ष
ज्ञानार्जन की किसे फ़िक्र थी
अव्वल आने का संघर्ष
खेल-कूद मे भी होता था
जीत कर आने का संघर्ष
बड़े हुए तो पता लगा की
अभी तो शुरू हुआ नही संघर्ष
क्या इच्छा है क्या है आशा
पता लगाना भी संघर्ष
स्वयं की आकांक्षाओं, अन्य की अपेक्षाओं
पे खरा उतरने का संघर्ष
अर्थार्जन कर अपने पैरो पे
खड़े होने में है संघर्ष
कौन हितैषी कौन विद्वेषी
पता लगाना है संघर्ष
'क्या-क्यों-कैसे-' के तूफ़ानों से
लड़ते रहे करते संघर्ष
अपने लिए तो सब जीतें हैं
औरों के लिए जीना है संघर्ष
कौन है तू, और क्यो आया है
चहुँओर घुमाती जिज्ञासा कराती संघर्ष
सच है यह कोई दोमत नहीं
पग-पग पर करना है संघर्ष
पर है एक तथ्य यह भी सही
संघर्ष-रहित जीवन, जीवन नहीं
जल का महत्व समझा है वही
तपती धूप मे भटका जो कहीं
सोने मे चमक कभी आती नही
अगर अग्नि उसे जलाती नहीं
मानव रह जाता आदिमानव ही
यदि सतत-संघर्ष करता नहीं
अंततः सिर्फ़ कहना है यही
कि संघर्ष-रहित जीवन, जीवन नहीं
" A poem begins as a lump in the throat, a sense of wrong, a homesickness, a lovesickness. It finds the thought, and thought finds the words'. - Robert Frost
Tuesday, December 29, 2009
Wednesday, December 23, 2009
सरफरोशी की तमन्ना
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है ।
करता नहीं क्यों दुसरा कुछ बातचीत,
देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफिल मैं है ।
रहबर राहे मौहब्बत रह न जाना राह में
लज्जत-ऐ-सेहरा नवर्दी दूरिये-मंजिल में है ।
यों खड़ा मौकतल में कातिल कह रहा है बार-बार
क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है ।
ऐ शहीदे-मुल्को-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार
अब तेरी हिम्मत का चर्चा ग़ैर की महफिल में है ।
वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमां,
हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है ।
खींच कर लाई है सब को कत्ल होने की उम्मींद,
आशिकों का जमघट आज कूंचे-ऐ-कातिल में है ।
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है ।
-----------राम प्रसाद बिस्मिल
देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है ।
करता नहीं क्यों दुसरा कुछ बातचीत,
देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफिल मैं है ।
रहबर राहे मौहब्बत रह न जाना राह में
लज्जत-ऐ-सेहरा नवर्दी दूरिये-मंजिल में है ।
यों खड़ा मौकतल में कातिल कह रहा है बार-बार
क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है ।
ऐ शहीदे-मुल्को-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार
अब तेरी हिम्मत का चर्चा ग़ैर की महफिल में है ।
वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमां,
हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है ।
खींच कर लाई है सब को कत्ल होने की उम्मींद,
आशिकों का जमघट आज कूंचे-ऐ-कातिल में है ।
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है ।
-----------राम प्रसाद बिस्मिल
पुष्प की अभिलाषा
चाह नहीं मैं सुरबाला के
गहनों में गूँथा जाऊँ
चाह नहीं, प्रेमी-माला में
बिंध प्यारी को ललचाऊँ
चाह नहीं, सम्राटों के शव
पर हे हरि, डाला जाऊँ
चाह नहीं, देवों के सिर पर
चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ
मुझे तोड़ लेना वनमाली
उस पथ पर देना तुम फेंक
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
जिस पर जावें वीर अनेक ।।
- माखनलाल चतुर्वेदी
गहनों में गूँथा जाऊँ
चाह नहीं, प्रेमी-माला में
बिंध प्यारी को ललचाऊँ
चाह नहीं, सम्राटों के शव
पर हे हरि, डाला जाऊँ
चाह नहीं, देवों के सिर पर
चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ
मुझे तोड़ लेना वनमाली
उस पथ पर देना तुम फेंक
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
जिस पर जावें वीर अनेक ।।
- माखनलाल चतुर्वेदी
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