Saturday, July 31, 2010

हम करें राष्ट आराधन

हम करें राष्ट आराधन
तन से मन से धन से
तन मन धन जीवनसे
हम करें राष्ट आराधन

अन्तर से मुख से कृती से
निश्र्चल हो निर्मल मति से
श्रध्धा से मस्तक नत से
हम करें राष्ट अभिवादन…

अपने हंसते शैशव से
अपने खिलते यौवन से
प्रौढता पूर्ण जीवन से
हम करें राष्ट का अर्चन…

अपने अतीत को पढकर
अपना ईतिहास उलटकर
अपना भवितव्य समझकर
हम करें राष्ट का चिंतन…

है याद हमें युग युग की जलती अनेक घटनायें
जो मां के सेवा पथ पर आई बनकर विपदायें
हमने अभिषेक किया था जननी का अरिशोणित से
हमने शृंगार किया था माता का अरिमुंडो से

हमने ही ऊसे दिया था सांस्कृतिक उच्च सिंहासन
मां जिस पर बैठी सुख से करती थी जग का शासन
अब काल चक्र की गति से वह टूट गया सिंहासन
अपना तन मन धन देकर हम करें पुन: संस्थापन

हम करें राष्ट आराधन
तन से मन से धन से
तन मन धन जीवनसे
हम करें राष्ट आराधन

--- जयशंकर प्रसाद
(चाणक्य धारावाहिक)

1 comment:

  1. है याद हमें युग युग की जलती अनेक घटनायें
    जो मां के सेवा पथ पर आई बनकर विपदायें
    हमने अभिषेक किया था जननी का अरिशोणित से
    हमने शृंगार किया था माता का अरिमुंडो से
    उम्दा

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