Thursday, November 22, 2012

लगता नहीं है दिल मेरा

लगता नहीं है दिल मेरा उजड़े दयार में 
किस की बनी है आलम-ए-ना पायेदार में

कह दो इन हसरतो से कहीं और जा बसें
इतनी जगह कहाँ है दिल-ए-दागदार में

उम्र-ए-दराज़ मांग कर लाये थे चार दिन
दो आरज़ू  में कट गए दो इंतज़ार में 

कितना है बदनसीब 'ज़फर' दफ्न के लिए
दो गज ज़मीं भी न मिली कु-ए-यार में

--- बहादुर शाह 'ज़फर'

No comments:

Post a Comment

Creative Commons License
Poetry and prose by Avishek Ranjan is licensed under a Creative Commons Attribution-ShareAlike 3.0 Unported License