Saturday, September 24, 2011

मन समर्पित तन समर्पित

मन समर्पित तन समर्पित और यह जीवन समर्पित
चाहता हूँ मातृ-भू तुझको अभी कुछ और भी दूँ ॥
माँ तुम्हारा ऋण बहुत है मैं अकिंचन
किन्तु इतना कर रहा फिर भी निवेदन
थाल में लाऊँ सजाकर भाल जब
स्वीकार कर लेना दयाकर यह समर्पण
गान अर्पित प्राण अर्पित रक्त का कण-कण समर्पित ॥१॥

माँज दो तलवार को लाओ न देरी
बाँध दो कसकर कमर पर ढाल मेरी
भाल पर मल दो चरण की धूलि थोड़ी
शीष पर आशीष की छाया घनेरी
स्वप्न अर्पित प्रश्न अर्पित आयु का क्षण-क्षण समर्पित ॥२॥

तोड़ता हूँ मोह का बन्धन क्षमा दो
गाँव मेरे व्दार घर आँगन क्षमा दो
आज सीधे हाथ में तलवार दे दो
और बाएँ हाथ में ध्वज को थमा दो
ये सुमन लो ये चमन लो नीड़ का तृण-तृण समर्पित ॥३॥

--- राम अवतार त्यागी

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Poetry and prose by Avishek Ranjan is licensed under a Creative Commons Attribution-ShareAlike 3.0 Unported License