Thursday, January 14, 2010

सावन का वो एक दिन

सावन का वो दिन ....तुम्हें भीगता देखा था
पता नहीं क्या था वो, एक धक्का सा लगा था
ऐसा लगा जैसे कोई सपना हो
अचानक कोई बन गया अपना हो

यूँ तो क्लास में रोज़ होते थे तुम्हारे दर्शन
पर शर्म और डर से उलझा रहता था मन
आज ऐसा लगा जैसे सुलझ गयी हो उलझन
ख़याल आया कि बना लूँ तुम्हें दुल्हन

खड़ी थी तुम मुझसे बेख़बर, बिखरे थे तुम्हारे बाल
चमकते नैन कर रहे थे इन्द्रदेव से सवाल
मैं बदहवास सा, बढ़ा चला जा रहा था
नज़रें कहीं, पग कहीं ले जा रहा था
छतरी थी मेरे पास, जाने कैसा संयोग
भीगने का आनंद, उसका करता क्यों प्रयोग

तभी अचानक किसी ने रख दिया झकझोरकर
ठोकर लगी, गिर पड़ा मैं संतुलन खोकर

दर्द तो हुआ , पर मन-ही-मन मुस्काया
जब तुम्हे अपनी ओर देखता पाया |
तुम खड़ी रही चुपचाप, जाने क्या सोच रही !
दिल ने कहा " तुम इतनी निर्दयी तो नही"

कराहता पड़ा रहा, अश्रु बह गये वर्षा में
चोट का अहसास नही, दर्द उमड़ा अब दिल में
आँखें बंद कर ली मैने, धरती हो गयी लाल
सहसा किसी ने मेरी चोट पे डाला रुमाल

हुई सिहरन सी, जब किया तुमने स्पर्श
मैं क्या करता क्या नही, देता कोई परामर्श
इतने करीब थी तुम, तुम्हारी सासें गिन पा रहा था
पीड़ा थी छू मंतर , आँखें खोलना नही चाह रहा था

" दर्द है क्या ?" , कानो में आवाज़ आई
जैसे किसी ने मन्दिर की घंटी बजाई

"ये क्या सवाल है ?...दर्द से बुरा हाल है "
"दिखता नही ज़मीन मेरे खून से लाल है !"

"अच्छा रूको, थोड़ा सब्र करो भाई,
मैं अभी गयी और रिक्शा लेकर आई |"

थप्पड़ लगा जैसे, रोमांच का घड़ा फूटा
नींद खुल गयी, स्वप्न था मेरा टूटा
चोट भी नही थी, 'थप्पड़' भी नही पड़ा था
न जाने वो स्वप्न अच्छा या बुरा था

खिड़की से बाहर देख मुस्काराया,
बादल उमड़ रहे थे
इन्द्रदेव हस रहे थे,
शायद कोई..... षड्यंत्र रच रहे थे

3 comments:

  1. I enjoyed reading your poem! Could visualise you in the main character through the length of the read.. Was like a nice hindi movie song! Nice one!

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  2. Kya baat hain Yashu.. Bhaskar is trying hard to come out of Lovable Loser Character and tumne to ek naya character bana diya ..Lovable Super Loser.
    Its really hard to write a Poem wrt a Story.
    Good Job...Ha haha

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  3. Thanks, I was just trying to utilise my experience of watching bollywood movie songs, advertisements, ab galti se poem ban gayi to meri kya galti ? :)

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Poetry and prose by Avishek Ranjan is licensed under a Creative Commons Attribution-ShareAlike 3.0 Unported License